यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई बीमार हो और उसे मेडिसिन की जरूरत हो।
मैं इस किताब को ऐसे समय मे पढ़ रही हूं, जिस वक्त मुझे इसकी सख्त जरूरत है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई बीमार हो और उसे मेडिसिन की जरूरत हो। इसमें कोई दो राय नहीं मैं बहुत भावुक हूँ, सच कहा जाय तो आवश्यकता से अधिक।किसी का भी दुःख मुझे दुःखी कर सकता है, किसी के भी सुख में हम संतोष तलाश लेते हैं, इस बात से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता कि वह मेरा सुख दुःख नहीं है।
हम रोज ऐसे तमाम व्यक्तियों से मिलते होंगे जिनके संघर्ष की अपनी कहानी है, कई बार व्यक्ति अपने दुखों को इसलिए बढ़ा कर बताता है कि उसे आपका एटेंशन चाहिए होता है।पिछले कई वर्षों से हम ऐसे तमाम लोगों की दुःख भरी दास्तान सुन रहे हैं, एक मोड़ पर आके स्वयं महसूस होता है किसी भी तरह इसको इस दुःख से मुक्त करना चाहिए। बस इसी मोड़ पर आप एक चक्रव्यूह में हैं, इस चक्रव्यूह में आपका प्रवेश निःशुल्क है पर भावुक व्यक्ति के लिए इसमें से निकलने की बहुत भारी कीमत हैं। अगर आप भावुक हैं आपको इन सब से निकलने के लिए औरों से कम अपने आप से अपने भावनाओं से ज्यादा लड़ना पड़ेगा। कई बार दुःख के क्षणों में किसी विशेष समय कही गई बात बिल्कुल उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती जितना हम उसको ले लेते हैं। उस दुःख को लेकर एक अलग संसार गढ़ लेते हैं।आप एक महीने बात अगर वही टॉपिक पर उस व्यक्ति से बात करेंगे तो पाएंगे कि उस बात का उतना महत्व नहीं रहा जितनी गम्भीरता से उसे एक महीने पहले कहा गया था।
यहाँ एक शब्द आता है एटेचमेंट(अपनत्व).भावुकता को समझने जे लिए सबसे पहले ईगो और अटैचमेंट को समझना बहुत जरूरी है।तो, इमोशन को कंट्रोल करने के लिए यह जानना जरूरी है यह काम कैसे करता है।
Ego क्या है?
ईगो वो सेल्फ आइडेंटिटी है जो आपने पूरी जिनगी लगा के अपने लिए बनाई है।
अब अटैचमेंट क्या है, ये क्या बनाता है?
एटेचमेंट बिलीफ बनाता है और ये बिलीफ आगे चलकर इमोशन में बदलना शुरू हो जाता है।
अब भावुक होना क्या बुरी बात है?
इसका कोई नुकसान है?
इससे फायदा भी हो सकता है?
बुरा यह इस तरीके से है की आप इसको हाइप करके कितना बड़ा बना सकते हैं कितना तूल दे सकते हैं…..भविष्य की चिंता छोड़ दीजिए, उसे किसी ने नहीं देखा क्या होगा यह सोचकर आप वर्तमान को गंवा रहे हैं।
बहुत जगह काफी खूबसूरत बातें लिखी हुई हैं इस किताब में, कई लेखकों का कोटेशन भी दिया गया है।
“Ego is neither good nor bad, it’s just a lack of self awareness.It fades away as you become aware of it since ego and awareness cannot coexist.”
इस किताब में बहुत बारीकी से इन सब बातों का जिक्र हुआ है,पढ़ कर आनंद आएगा, आप अपनी भावुकता को लेकर एक अलग तरह से सोच पाएंगे।
अच्छी किताब है भावुक लोगों को विशेषकर पढ़नी चाहिए।
By- प्रियंका प्रसाद