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अमृता प्रीतम की कविता, ‘सिगरेट’

अमृता प्रीतम : अमृता प्रीतम न केवल एक कवयित्री थीं, बल्कि उपन्यास, लघु कथाएँ और निबंधों की एक उत्कृष्ट लेखिका भी थीं। उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में “पिंजर” (द स्केलेटन), “कागज़ ते कैनवस” (पेपर एंड कैनवस), और “रसीदी टिकट” (रेवेन्यू स्टैम्प) शामिल हैं। उनके लेखन में अक्सर मानवीय रिश्तों, सामाजिक मुद्दों और पितृसत्तात्मक समाजों में महिलाओं के संघर्ष की जटिलताओं का पता लगाया जाता है। जीवन भर प्रेम में सिर से पांव तक डूबीं अमृता जितनी प्रेम में डूबी थीं, उतनी ही खुद्दार और आज़ाद ख्यालात की मलिका भी थीं। अमृता प्रीतम ने प्रेम और आज़ादी, दो अलग-अलग चीजों को जोड़कर प्यार को एक नया ही रंग गढ़ दिया था। अमृता और इमरोज़ का आपसी प्यार हो या साहिर से उनकी निराश्रित
प्रेम, उनके लेखन में साफ़ झलकता है।

तो चलिये ब्लॉगिंग हौंट डॉट कॉम पर पढ़िए अमृता प्रीतम की एक कविता-

सिगरेट

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो

मेरे इस जिस्म में
तेरा सांस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा

उमर की सिगरेट जल गई
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सांसों में
कुछ हवा में मिल गई,

देखो यह आखिरी टुकड़ा है
उंगलियों में से छोड़ दो
कहीं मेरे इश्क की आंच
तुम्हारी उंगली ना छू ले

ज़िंदगी का अब ग़म नहीं
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खैर मांगती हूं
अब और सिगरेट जला ले !!

– अमृता प्रीतम