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तितली

तितली

मेरी समीक्षाएं…

मानव कौल की दसवीं किताब है और इस किताब का विषय वस्तु उनकी और किताबों से एकदम अलग है।उनकी हर किताब को पढ़ते हुए लगता है, उन्होंने उस किताब को केवल लिखा नहीं है बल्कि जिया है, उन तमाम किरदारों को भी जिनका जिक्र अपनी किताबों में किया है उनको देखा है, मिले हैं, उनके सुख-दुःख को महसूस किया है और यह सब महसूस करते हुए रोज रोज थोड़ा थोड़ा लिखा है।

उनके लेखन की तरावट है उनका अपने कलम के प्रति ईमानदार होना, लिखाई को आदर्शवादी न बनाकर प्रेक्टिकल की तरफ ले जाना। जैसा है उसे वैसा ही लिखना,एकदम सीधा सपाट।अगर किसी से मिला उसे वैसा ही लिखा, क्या महसूस किया उसे वैसा ही लिखा, क्या देखा उसे भी बिल्कुल वैसा है…. और जब सब कुछ वैसा ही है तो लेखन से एक ईमानदारी वाली सुंगध आती है।

इस किताब को लिखने से पहले उन्होंने तमाम किताबों को पढ़ा है। बहुत सारी किताबों का इसमें जिक्र आया है।

इस किताब को पढ़ते समय बार बार मन मे एक ख्याल आता है जब दो लिखने वाले मिलते हैं तो क्या केवल किताबों की बातें करते हैं….किस लेखक ने क्या लिखा…जब लिखा तब उनके दिमाग मे क्या चल रहा था…..चुप्पी को भी शब्दों में लिखा जा सकता है….!कितने ही नाम उभर कर आ रहे हैं…Naja Marie Aidt, Simone De Beauvoir-A very easy death,John Didion-The year of magical thinking,Time Lived, without it’s flow-Denise Riley,Werner Herzog-Of walking in ice, The Death of Ivan Ilyich-Leo Tolstoy…..इतनी किताबों और लेखकों को पढ़ने के बाद लिखी जाती है ‘तितली’।

‘तितली’ लिखने का प्रारंभ बिंदु है विश्व प्रसिद्ध लेखिका Naja Marie Aidt की किताब When death takes something from you give it back-Carl’s Book’ का पढ़ना।

यह किताब नाय्या ने अपने प्यारे बेटे कार्ल के मरने के बाद लिखा है। लिखना पीड़ा व्यक्त करने का एक तरीका है और उनके पास लिखने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था, अपने दुःख को व्यक्त करने के लिए।उन्होंने अपनी पीड़ा को लिखा, लोगों ने पढ़ा और उनकी यह किताब बेस्टसेलर में भी रह चुकी है।

मानव कौल इस किताब को पढ़ते हैं और वह उनके लेखन से इतने प्रभावित होते हैं कि उनसे मिलने के लिए कोपेनहेगन जाना चाहते हैं।इसके लिए वो एक मेल लिखते हैं, Naja इसकी अनुमति देती है और उनसे मिलने वो कोपेनहेगन जाते हैं।

कॉर्ल से जुड़ी हर एक जगह पर वो जाते हैं जहाँ उसका जन्म हुआ था, उन तमाम गलियों में घूमते हैं जहाँ वो पला बड़ा हुआ, उस खिड़की को जहाँ से कूद कर उसने आत्महत्या की थी, उस हॉस्पिटल को जहां वो अंतिम समय मे एडमिट था जब उसके ऑर्गन्स डोनेट किये जा रहे थे, उसकी कब्र पर जहाँ उसे दफनाया गया।इन सब जगह घूमने में वो Naja की किताब को एक तरह से जीते हैं।इस अनुभव को ही उन्होंने ‘तितली’ का नाम दिया है।इस किताब के कवर पृष्ठ पर जिस स्त्री की आधी अधूरी तस्वीर है वो Naja हैं, उनके गले में एक लॉकेट है जिसपर तितली बनी हुई है। अंतिम पृष्ठ पर एक तितली कब्र पर भी बनी हुई है। किताब का नाम इसलिए ‘तितली’ है।

किताब की कुछ उम्दा लाईन जो मन को छू गई वो है-

“कभी कभी बहुत प्रतिभा एक सागर की एक बड़ी मछली की तरह होती है, अगर आपके भीतर के तालाब में उस मछली के विचरण की जगह नहीं होगी तोवो उस तालाब को अस्त व्यस्त कर देगी। आपकी प्रतिभा का सम्बंध आपके भीतर एक शान्त सागर से है।”

“हँसना एक तरीके का समझौता होता है कि अब हम एक दूसरे पर थोड़ा और विश्वास कर सकते हैं।”

“कॉर्ल की मृत्यु को सब अपने अपने तरीके से सह रहे थे। मुझे लिखने के अलावा और कोई तरीका समझ नहीं आया।”

“मैं जब अपने लिखने को, लिखते वक्त बहुत गहराई से महसूस कद रहा होता हूँ तब मैं ऐसा कुछ लिखना चाहता हूं जो इस वक्त में जी रहा हूँ।”

By-  प्रियंका प्रसाद

2 thoughts on “तितली

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