मूवी रिव्यू…
त ई शुक के हम थे फुलेरा गांव में..
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.जहवाँ विकास कहते हैं…
वजन बहुत बढ़ गया है..
दारू कंट्रोल कीजिये.
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टँकी पर से गिर गए न त MBA का सपना सपने रह जायेगा..
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ई अभिषेक सर आ रिंकिया में कुछ चल रहा है का??
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सीधी पल्ला का साड़ी पहिर के पर-सन का सिलाई मशीन चलाती हुई ग्राम परधाइन…..गुस्सा में जेतना तेज जबान चलाती हैं सिलाई मशीन भी वो ही स्पीड में चलाती हैं।
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….बाकी उज्ज्वला योजना का कौनो फायदा नहीं मिला है परधाइन को…एकर त उम्मीद था सीजन 2 में।
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.आप त कुछु बताते नहीं त मजदूर से ही सीखेंगे न…..
(मने देख रहे हैं न परधाइन का तेवर,तेज तर्रार टाइप)
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.जहाँ दर मोलाई में परमेश्वर जी से दिक्कत है त परधाइन को आगे कई द…सब सम्हार लेगी।
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.मामा के लड़का को दूध का हिसाब दे और परदेश से आये लड़के को फ्री का लौकी……बताइये बिना सीसीटीवी के अभिषेक सर के रिकॉर्डिंग हो रहा है…
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.सर अभी हमको निकलना पड़ेगा..
क्यों का हुआ?
कल रात को बीबी कटहर का तरकारी और पूड़ी बना दी थी..
बहुत जबरदस्त बन गया था…
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सर हमारी पत्नी का पेट खराब हो गया है।
(पत्नी का पेट खराब होने पर विकास को अभिषेक सर छुट्टी दे देते हैं,ई बतलाता है अभिषेक सर केतना नरम दिल इंसान हैं।)
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.खुदे आ रहे हैं, महाराज का हड़बड़ा का रहे हैं..
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.पहले शीट तो लग जाने दो पर्दा, सोफा बाद में लग जायेगा…
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पंचायत 2 एकदम एक्के सिटिंग में खत्म करने वाला सीरीज है। हफ्ता, 10 दिन, 15 दिन में कोई न कोई सीरीज आती ही रहती है, पर जो उत्सुकता पंचायत 2 को लेकर थी वो बहुत कम सीरीज के लिए होती है।एकदम साफ-सुथरी सीरीज जिसे आप अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर आराम से देख सकते हैं। गाँव , देहात की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है यह सीरीज। जिस सादगी, सरलता और परिपक्वता से इसे लिखा गया है उतने ही सादगी से किरदारों ने इसे निभाया भी है।इतना साधारण दिखकर किसी कहानी में जान फूंकना कितना मुश्किल रहा होगा किसी भी कलाकार के लिए।
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कहीं भी किसी भी सीन में नकलीपन टाइप का कुछ भी नहीं है।वही बोली,वही लहजा, वही तेवर,वही नोंक झोंक ऐसे ही तो होता है गाँव में।
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फॉरेन रिटर्न को डेढ़ करोड़ के पैकेज के आगे सचिब वाला पोस्ट बढ़िया लेता है…बुझता है गाँव मतलब दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे टाइप एकदम पियर सरसों फुलाया होगा….चारों तरफ पियर पियर….बाकी जो रोज गाँव मे रह रहा है उ किस परिस्थिति से गुजर रहा है ये वही जानता है।गाँव मतलब भइंस के साथ सेल्फी, शहर से आया आदमी को भइंस के साथ ही सेल्फी खिंचाने में इंटरेस्ट है….
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तीसरा वाला पार्ट में विनोद एकदम जबर एक्टिंग किये हैं।शीट लगे न लगे उ आश्वासन भी एतना बकलोल टाइप से ले रहे हैं जैसे लग रहा है वो एक्टिंग नहीं कर रहे हैं वो जी रहे हैं उस किरदार को…..मजदूर से जब पूछते हैं आप चाह पीजियेगा….उ सिन देख के लग रहा है मजदूर को चाह से ज्यादा विनोद को दु गिलास मौसमी कर जूस का जरूरत है….फिर एक बोरा लेकर आते हैं और बड़ा ललसा से वाशरूम के दरवाजा पर टांगते हैं….ई देख के मजदूर कहता है शीट त लग जाने दो पर्दा सोफा बाद में लगाना।गरीब आदमी को सरकार के आश्वासन से केतना असरा रहता है यह सीन में वही दिखाने की कोशिश की गई है।
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अब आते हैं इस बात पर एपिसोड तो 8 बन गया सीजन 2 में पर इसमें कहीं प्रेम कहानी है।
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वाकई अभिषेक सर और रिंकिया में कुछ चल रहा है???
बहुत पहले एक फिल्म आई थी हम साथ साथ हैं, उस मूवी में सोनाली बेंद्रे का जो रोल था वो रोल मुझे बड़ा उम्दा लगा था, डायलाग उनके हिस्से इक्का दुक्का था पर उनका देखना, शर्माना उसमें वो सब था ….जितना से एक पुरुष को अपने प्रेम और आकर्षण में बाँधा जा सके।
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अभिषेक और रिंकिया कि भी कहानी कुछ कुछ वैसी ही लग रही। आमने सामने दोनों का संवाद कम है। रिंकिया केवल मुस्काती है।उसकी मुस्कान आकर्षक और निश्छल है..हर सीन में लगभग मुस्काती है।
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.प्रधान -परधाइन में खटर पटर होते रहता है पर वो मुस्काती रहती है… पापा के प्रति तनि बायस्ड है पर उ तो हर लड़की होती है।
अभिषेक सर जब रिंकिया को हाय करते हैं विकास पूरा शक कर दृष्टि से देखते हैं।
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.एक जगह रिंकिया की सहेली पूछती है तुम दोनों का कुछ चल रहा है रिंकिया फिर मुस्करा देती है।
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.और सबसे इम्पोर्टेन्ट बात उ अभिषेक सर के पास ही मदद मांगने क्यों जाती है?क्योंकि वो अभिषेक पर ट्रस्ट करती है, वो जानती है अभिषेक सर ई बात किसी को नहीं बताएंगे।इसके अलावा नम्बर भी तो सेव करती है।तो दाल में तनि मनी त कुछ काला बुझा जाय न।
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.जरूरी नहीं न प्रेम में सबकुछ बोल या मांग के ही हासिल किया जाय, बहुत कुछ बिना बोले चुपचाप धीरे धीरे होना चाहिये।किसी के प्रति कोई भावना भी अचानक नहीं आती,जहां उसे लगा अभिषेक को सहारा चाहिए उसने मैसेज ड्राप किया।वैसे भी रिंकिया को ज्यादा हंसने वाला लड़का पसन्द नहीं, ई हिसाब से अभिषेक सर ठीक है…कब्बो कभार हंसते है बाकी टाइम त उ कनफ्यूजीआये ही रहते हैं या गुस्सा रहते हैं।
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.आठवाँ एपिसोड अंतिम उनइस मिनट कहानी एकदम यू टर्न ले लिया…इसका तो उम्मीदे नहीं था…एगो कमेडी सीरीज की तरह हम इसको देखे जा रहे थे….
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.केतना बड़का बड़का बात बोल दिए
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.केतना देर तक बाहर रहेंगे लौटकर तो घर आएंगे न….परिवार का एक सदस्य कम हो गया है….
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.कहीं तो कुछ ऐसा था न कि अंत मे आँख ढबढीआ गया।कहीं न कहीं हम इस सीरीज के साथ किसी यात्रा पर तो नहीं थे न, जैसे लगा कुछ छूट गया…कोई पिता अकेला छूट गया दुनिया के भीड़ में…ई कौन थे प्रह्लाद चा….अकेले नहीं थे प्रह्लाद चा… पूरा फुलेरा उनके साथ था…
.एकदम इसका एक एक डायलाग कलेजा काढ़ के लिखा हुआ है…पंचायत2 जैसा सीरीज बार बार नहीं बनता…. पंचायत3 के असरा में।
By- प्रियंका प्रसाद
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Thank you so much for your appreciating..
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