अल्मा, हां यही उसका नाम है, कबूतरी उसकी जनजाति है, हाशिए पर जीती हुई जनजाति। इस जनजाति के पुरुष या तो जंगल मे रहते हैं या जेल में, स्त्रियाँ शराब के भट्टे पर या….!
अल्मा कबूतरी……कितना अजीब नाम है न। पहली बार मुझे भी लगा था, मैंने तो बस जल्दी जल्दी में कवर पृष्ठ देख के ले लिया था।कवर पृष्ठ पर बिना चिंता फिक्र के बीड़ी पीती हुई स्त्री, मन में सवाल आया था क्या कहानी छुपी होगी इसके अंदर?
कुछ लिखने के पहले मेरा एक प्रश्न है, दुनिया में हर चीज़ सही या गलत ही है क्या?
क्या ऐसा मान लिया जाय जो सही नहीं है वो गलत है?
या जो गलत नहीं है वह सही है?
या सही या गलत के बीच भी कुछ होता है, जिसके बीच से जीवन अपने हिसाब से चलता रहता है, सही और गलत से परे।
यह कौन तय करेगा कि सही क्या है और गलत क्या है?
अल्मा, हां यही उसका नाम है, कबूतरी उसकी जनजाति है, हाशिए पर जीती हुई जनजाति। इस जनजाति के पुरुष या तो जंगल मे रहते हैं या जेल में, स्त्रियाँ शराब के भट्टे पर या….!
गुदने में जबरदस्ती उसके हाथ पर यह नाम गुदवा दिया गया, अल्मा कबूतरी।वो नहीं चाहती थी उसके हाथ पर गुदवाया जाय पर जबरदस्ती गुदवा दिया गया।
कहानी की नायिका केवल अल्मा नहीं है, मुख्य भूमिका में है कदमबाई, तीखे नैन नक्श वाली सुंदर स्त्री।
एक जगह पढ़ा था पूछो उनसे जिन स्त्रियों के चेहरे पर नमक है, उनका नमक उनको कितना भारी पड़ता है।
बिल्कुल वैसा ही है इसमें कदमाबाई का जीवन।उसका सुंदर होना उसके जीवन में वैधव्य लाता है। जब भी स्त्रियाँ सुंदर लगी हैं वो प्रेम, बल या छल किसी न किसी द्वारा हमेशा जीती गई हैं।उसका पति जंगलिया चोर है,बस चोर नहीं नामी गिरामी चोर अपनी बिरादरी में उसका नाम है, लोग खौफ खाते हैं, भय उसको छू भी नहीं गया है, परिवारिक जीवन ठीक ठाक है।
दूसरी तरफ भली बस्ती के मंसाराम, कदमबाई आंखों में क्या जड़ी, कुलशील संस्कारी मंसाराम, घर परिवार, नाते रिश्तेदार, गली मुहल्ले, गाँव, जिला जवार सबके लिए घृणा के पात्र हो गए।
अब मुहरे बिछाये जाते हैं, दाव पेंच लगाए जाते हैं और दो घटनाएं समनान्तर घटित होती हैं एक तरफ जंगलिया पुलिस द्वारा मारा जाता है और धोखे से ही सही कदमाबाई मंसाराम के सम्पर्क में आ जाती है।
पाप का घड़ा भर गया, टूट गया, फुट गया।अब मंसाराम का मन प्रायश्चित से भर गया, मन में भय भी व्याप्त है, सपने में जंगलिया आता है, उसका भय उनको बहुत सताता है। पहले उनको लगता था कदमाबाई मन को भा गई है, अब मन में ही मर जाएगी?किसी तरह अब प्राप्त हो गई, तो अब उनका मन अशांत है। ईश्वर की शरण में हैं वो। सुबह- शाम धूप धुना, भजन कीर्तन, आरती में कई वर्षों तक लगे हुए हैं।सारे कांड करने के बाद उनको याद आता है उनकी पत्नी आनन्दी है, उनके दो बच्चे है, समाज मे उनको एक नाम और रुतबा भी बनाये रखना है।
उधर कदम एक बेटे को जन्म देती है राणा, गरीबी, भुखमरी, दुःख, तकलीफ के बीच। राणा कबूतरा बस्ती में पैदा हुआ है, पर एक भी लक्षण कबूतरों वाले नहीं है, स्वभाव उसका मंसाराम से मिलता है।वह अपने सम्बन्धों को लेकर कहीं भी खौफ में नहीं है।
मैं जहां तक इस उपन्यास को देख पा रही हूं, कहानी का धरातल यह नहीं है कि शादीशुदा होने के बावजूद वो कदमबाई से सम्बन्ध में हैं बल्कि कहानी का धरातल यह है कि इस घटना के बाद अपने मन को वो कितना भी साफ करने की कोशिश करें न अब वो समाज की नजर में भले व्यक्ति हैं न अपने परिवार की नजर में, न स्वयं की नजर में।स्वयं को माफ भी नहीं कर पा रहे, परिवार के साथ रह भी नहीं पा रहे, सारे सम्बन्ध तोड़कर कदम तक भी जाने की हिम्मत उनमें नहीं ह।दलदल में फंसे हुए व्यक्ति की तरह हैं वो जितना भी इससे बाहर निकलने की कोशिश करें फिसल कर फिर वही आ जाते हैं।
एक तरफ मंसाराम का घर धन धान्य से भरपूर है। एक भरा पूरा परिवार, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं, सब ऐशो आराम, कई बीघे खेत। पर एक घर क्या बस दीवार और दो चार नर मुंड से बन जाता है…..शायद नहीं।घर में रमने के लिए एक मन भी चाहिए। वो तो कबूतरा बस्ती में कदमाबाई के झोपड़े में है, मैले कुचैले कपड़े में ठोड़ी पर गुदना गुदाये उस स्त्री के पास।
मुझे लगता है एक बंटा हुआ मन, एक बंटे हुए शरीर से ज्यादा खतरनाक है।आनंदी को अपने गृहस्थी में मंसाराम का वो मन और प्रेम भी चाहिए जो कदमबाई के पास है।आनंदी पत्नी है, उसका पहला अधिकार है मंसाराम पर।
पर प्रेम अपने आप में बहुत ही सरल/जटिल विषय है और यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि उसको सरल बना रहा या जटिल। पहली बात, तो यह कि प्रेम कोई दान में मांग कर लेने वाली वस्तु नहीं कि “बस मुझे प्रेम करो,मेरे अलावा तुम किसी को प्रेम नहीं कर सकते।”कोई यह कैसे तय कर सकता है तुम्हारे जीवन में जितने भी लोग हैं उनमें से मैं सबसे सही चयन हूँ प्रेम करने के लिए?यह प्रश्न ,यह उम्मीद ही मुझे निरर्थक लगती है। याचक और याचिका का सम्बंध नहीं है यह, अगर पति पत्नी के रिश्ते में हैं तो भी।सम्बन्ध सरल और मधुर होने चाहिए, अगर न भी हैं तो जबरदस्ती कुछ लादने की कोशिश प्रेम नहीं है।रिश्ते में एकनिष्ठ होना एक अलग तरह की साधना है, एक तपस्या है सबके बूते की बात वो नहीं। हां, जो नहीं हैं ऐसा नहीं है कि उन्होंने प्रेम करने का अधिकार खो दिया है।हम ईश्वर से प्रेम या विश्वास करते हुए कभी उनसे प्रश्न करते हैं क्या कि आप अगर प्रेम करोगे तभी करेंगे?आप विश्वास करोगे तभी करेंगे?नहीं न!
अब कहानी में राणा को दाल रोटी चाहिए यहां कदमबाई गुलेल से तोता और कबूतर पर निशाना साधती है। बाल मन घायल तोते को देख के रो पड़ता है। कदम सोचती है लड़ने के लिए बचे होना जरूरी है, बचने के लिए किसी तरह पेट भरना, पेट भरने के लिए हमलोग मरे हुए मुस का भी मास खा जाते हैं और यह लड़का जीव हत्या देख रो रहा है….!भविष्य की कल्पना से कांप जाती है वह। दूसरे राणा पढ़ना चाहता है, बस्ती में से पहले कोई पढ़ने नहीं गया। किसी तरह एडमिशन मिल भी गया तो चिलचिलाती धूप में पानी नहीं पी सकता, नल नहीं छू सकता, आगे डु और डोंटस की लंबी लिस्ट है। इतना आसान पढ़ लिख के उस वातावरण से निकल पाना नहीं।जिन्होंने निकलने की कोशिश की वो दुनिया से निकल गए।
उधर मंसाराम का बेटा उनपर हाथ उठाता है, घर का स्वघोषित मालिक है वह।उनको डर है किसी न किसी दिन उनका खुद का बेटा और सम्बन्धी उनकी हत्या कर देंगे।भय न उनको सोने दे रहा, न जागने, न इस करवट न उस करवट। सो वह एक रात अपनी खानदानी बंदूक लाकर कदम को देते हैं।यह इस उपन्यास का सबसे सुंदर भाग है।
किसी स्त्री का सबकुछ उजाड़ देने के बाद जब स्वयं की मृत्यु की बारी आती है तो वे कितना भयभीत हैं, शरणागत में जाते भी हैं तो उस स्त्री के पास जिसको कभी छल से पाने की कोशिश की थी उन्होंने।
कदमबाई बेख़ौफ़ सी अनपढ़ स्त्री कहती है,”तुम्हारी औरत के सामने वे लोग तुम्हारा चाहे सो करें, मेरे सामने हाथ नहीं लगा सकते।”
और इस तरह जीवन के उत्तरार्ध में मंसाराम कबूतरा बस्ती के हो जाते हैं, आगे कहानी में और लोग जुड़ते हैं, अल्मा मुख्य भूमिका में आती है, राणा और अल्मा की प्रेम कहानी, मनमुटाव, राजनीति। तरह तरह के अनुभव से आगे बढ़ती हुई कहानी।
राणा और अल्मा विवाह सम्बन्ध के कितने निकट थे, अचानक से एक बार फिर शोषण की कहानी, केवल एक अविश्वास की वजह से।
और अंत में,कभी लिखा था मैंने…..किसी को बहुत ज्यादा प्रेम करना भी बहुत अच्छी बात नहीं होती, यह जान लेना आवश्यक है उसे उतने प्रेम की आवश्यकता भी है या नहीं, यह बिल्कुल वैसा ही है एक कप चाय में छः चम्मच चीनी मिलाने जैसे, चीनी कितनी भी मीठी हो सेचुरेशन पॉइंट के बाद वो और घुल नहीं पाती….और यही वह बिंदु है जहाँ रिश्ता वेंटिलेटर पर चला जाता है अब वह खुल के सांस नहीं ले पाता। आप और आपका व्यवहार कितना भी अच्छा हो एक समय के बाद आप चुभने लगते हैं।राणा और अल्मा की कहानी आगे ऐसी ही है।काफी लंबा उपन्यास है,लगभग चार सौ पन्नों का,आप भी पढ़िए, अच्छा लगेगा।
By- प्रियंका प्रसाद