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स्वरचिता

स्वरचिता-पल्लवी पुंडीर

मेरी समीक्षाएं…

स्त्रियों के ऊपर लिखी गई कुल ग्यारह कहानियों का संग्रह।स्त्रियों के ऊपर कितना भी लिखा जाए, सोच जाए समझा जाए कम है। उनका रंग, रूप, देह, आकार, प्रकार, गुण दोष, साज सज्जा,कितना कुछ तो है….!तमाम कविताएं, तमाम लेख,आलेख में कितनी सुंदर सुंदर बातें लिखी हैं, स्त्री को ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, उनके नख से शिख तक कुछ भी तो नहीं छोड़ा गया लिखने से।एक परिभाषा गढ़ा गया और उसमें स्त्री को बांध दिया गया।

अब ये परिभाषा किसने लिखी?

परिभाषा लिखी पुरुषों ने और उस परिभाषा को और भी पुष्ट किया उन महिलाओं ने जिनको लगा इस लक्ष्मण रेखा के अंदर की स्त्री ठीक है। जिन्होंने कभी प्रश्न नहीं किया, जिन्होंने कभी गलत को गलत नहीं कहा, जिन्हें लगा स्त्रियों का संसार इस लक्ष्मण रेखा के अंदर ही है।जो लक्ष्मण रेखा लांघ ही नहीं सकीं वो कहती है इसके बाहर की दुनिया बहुत गलत है।

अब, अब स्त्रियों के अंदर भी एक मन तो है और मन का मतलब क्या प्राण वायु अब उसको रेखा में कब और कैसे कोई बाँध पायेगा??

रेखा के उस पार स्त्रियों के लिए प्रश्न ही प्रश्न है, और समाज द्वारा दी हुई अपयश वाली उपाधियाँ,चरित्र का प्रमाणपत्र। प्रश्न करती हुई स्त्रियाँ किसी को अच्छी नहीं लगती, पुरुष तो पुरुष स्त्रियों को भी वे अच्छी नहीं लगती। हां, एक वर्ग ऐसा भी है जो इन स्त्रियों को आश्रय देता है, इन स्त्रियों को सुनता है समझता है।

पल्लवी पुंडीर ऐसी ही लेखिका हैं, उन्होंने प्रश्न करने वाली स्त्रियों को अपनी लेखनी में एक विशिष्ट स्थान दिया है। सम्बन्धों को केवल एक दृष्टि से देखकर उसपर सही या गलत का मुहर नहीं लगाया जा सकता, देखना ही है तो उसे सतह पर न बैठकर उपर से देखें जहाँ से आप सही और गलत सब देख सकें।

पहली कहानी जो मन भाई वो मीरायण है।

बहुत ही कम उम्र में विधवा हुई एक अल्हड़ अबोध बालिका मीरा और एक मुस्लिम युवक हर्फ़ की प्रेम कहानी, जीवन के सफर में एक दूसरे को जीवनसाथी चुनने इतनी स्वतन्त्रा कहाँ?? पर अब प्रेम में दें तो क्या दें???तो इस कहानी में हर्फ़ ने जीवन का एक मूलमंत्र दिया “शिक्षा तुम्हें पंख देगी।पंख उड़ान देंगे।उड़ान स्वन्त्रता देगी। स्वतंत्रता आत्मनिर्भरता देगी।फिर भेड़चाल के पीछे नहीं, अलग और अकेले चलने का आत्मविश्वास आ जायेगा।”…..इन शब्दों के सहारे मीरा का जीवन किटने उतार चढ़ाव झेल गया।

दूसरी कहानी “मैंने पिता को जन्म दिया” में नायिका द्वारा कहानीयां पढ़ने और विज्ञान विषय को न चुनने की वजह से पिता द्वारा हमेशा अपमानित करने की कहानी है।बाल मन बार बार प्रश्नों को लेकर पिता कर पास जाता है और बार बार प्रताड़ित होकर लौटता है।पिता की मृत्यु पर क्या महसूस होता है, उसे इस कहानी में शब्दों में ढालने की कोशिश की गई है।

तीसरी कहानी ‘केशकर्षिता’ में मीरा और कृष्ण के जीवन से सम्बंधित बातें हैं। एक लाइन उन्होंने बड़ी ही प्यारी लिखी है, “प्रकृति स्त्री है और परमात्मा ही एकमात्र पुरुष”।अब इन सुंदर सी बातें से आत्ममुग्ध करने वाली स्त्री वृंदावन कैसे पहुंचती है।तो, इस क्रम में वो लिखती हैं निर्धन के घर की सुंदरता सदा विक्रय होती है।क्रेता कौन है, विक्रेता कौन है??बारह वर्ष की कन्या और साठ वर्ष के धनाढ्य के व्यक्ति के साथ बांध दी जाती है।

“जब स्त्री विद्रोह नहीं करती, प्रश्न नहीं करती, वह पीड़ा हो जाती है, स्वंय से अधिक दूसरों के लिये।”

हम समानता की बात करते हैं पर यह सोचना भूल जाते हैं कि कितनी स्त्रियाँ माँ नहीं बनने पर जीवनसाथी ही बदल लेती हैं???

“अब दलदल में जीवित रहने के लिए कीचड़ को भोजन रूप में ही ग्रहण करना पड़ेगा।”

“इस धरती को छोड़ने के पश्चात भी पुरुष स्त्री पर अपने सवामित्व को छोड़ नहीं बन पाता।”

प्रभाती कहानी को पढ़ के मंद मंद मुस्कान से खुद को रोक नहीं पाई, प्रेम को बिल्कुल प्रेम से लिखा गया है।

इस कहानी की सबसे सुंदर लाइन है

“प्रभाती साथ गाने का समय हो गया है, जाग रही हो न…”

सारी कहानियों के बारे में लिखना सम्भव नहीं।पर इतना जरूर कहूंगी जैसे मेले में घूमते हुए हर दुकान पर एक नई चीज आपको देखने को मिल जाती है न , इस किताब की कहानियां भी बिल्कुल वैसी है। पहली दूसरी से बिल्कुल अलग। कहानी का आधार एकदम अलग।पढ़ कर लगता है केवल पल्लवी जी ने इस कहानी को लिखा ही नहीं है, उन पीड़ाओं को समेटा भी है, जीया भी है।

कितने ऐसे प्रश्न है हम जिसका उत्तर नहीं दे पाते, उत्तर नहीं देने से प्रश्न खत्म नहीं हो जाते….प्रश्न मन में अदहन की भांति खोलते रहते हैं।

दूसरी इस किताब की विशेषता है शब्दों का चयन, सुशोभित सर, सुनीता जी के बाद किसी के पास आज कल शब्दों का सुंदर भंडार है तो वो हैं “पल्लवी पुंडीर”।

आपने बहुत कुछ मन का लिखा, हमेशा ऐसी ही लिखती रहें।

By-प्रियंका प्रसाद ( पुस्तक समीक्षा)

2 thoughts on “स्वरचिता

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