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लिहाफ़-इस्मत चुग़ताई

मेरी समीक्षाएं…

इस्मत चुगताई के नाम के बिना उर्दू साहित्य अधूरा है, यह विवादस्पद लेखिका हैं और कहीं पढ़ा था कि बहुत से परिवारों में इनके लेखन के पढ़ने की पहले मनाही रही है। अब सवाल ये है की वो ऐसा क्या लिख दीं जिसके पढ़ने पर एक खास तबके के लोगों ने रोक लगा दी।

जो इस किताब का नाम है असल में वो एक कहानी है जो 1941 में लिखी गई थी और इतनी बेबाकी से लिखी गई थी कि लाहौर हाईकोर्ट में उनपर मुकदमा चला दिया गया। मुकदमा बाद में खारिज हो गया पर इस्मत चुग़ताई जी ने साबित कर दिया कि उन्होंने कहानियों के पात्र में केवल एक कल्पना को कागज पर नहीं उतारा है। ये पात्र कहीं न कहीं इर्द गिर्द हैं वो बात अलग है लोग इन विषयों पर खुल कर बात नहीं करते।

यह किताब ढ़ेर सारी कहानियों से भरी हुई है और प्रत्येक कहानी की केंद्रबिंदु स्त्रियां है। उच्च वर्गीय, मध्यमवर्गीय और निम्न वर्गीय स्त्रियां, उनकी समस्याएं, उनके सोचने का ढंग, प्रेम को लेकर उनकी आशाएं,निराशाएं।

इस किताब की जो कहानी सबसे ज्यादा मन भाई वो है ‘चट्टान’। इस कहानी को पति पत्नी के बीच प्रेम, आकर्षण, तलाक का ताना बाना बना कर लिखा गया है। कम उम्र में शादी, बच्चों की फौज,घर की जिम्मेवारियों को बखूबी निभाती स्त्री।जैसा पति को पसंद है बिल्कुल वैसे ही रहो, पर पति पर कोई नियम कानून लागू न हो। कुछ घटनाओं को रोज में अनदेखा करती हुई स्त्री। कोई मोहतरमा आकर कह दें कि इतनी मोटी हो गई तो भी कुछ विशेष फर्क न पड़ता, लगता है शादी हो गई, जमी जमाई गृहस्थी है तो सब ठीक है। पर एक दिन अचानक तलाक क्योंकि कोई और सुंदर लड़की उनके पति को अच्छी लगने लगी है।फिर कई साल बाद ऐसा होता है कि अब दूसरी पत्नी अपने पति पर चौकन्नी नजर रखती है।कारण यह है कि अब वो उनकी पहली पत्नी इतनी मोटी हो गई हैं और उनको लगता है पति को बांध कर रखने इतना आकर्षण उनमे नहीं है। हर जगह एक शक का माहौल उनको घेरे रहता है कि उनके पति उनको कहीं छोड़ न दें। वास्तव में जो उन्होंने उनकी पहली पत्नी के साथ किया वैसा ही फल उनको मिल रहा है।

सारी कहानियों में उर्दू के शब्दों का बहुत ज्यादा प्रयोग किया गया है। हर कहानी के अंत मे एक लिस्ट भी बनाई गई है जहां उर्दू के कठिन प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ दिए हुए हैं।

दूसरी कहानी जो मन भाई वो है अमरबेल।मैंने इस कंसेप्ट की कोई कहानी नहीं पढ़ी थी। एक बड़े अनोखे अंदाज में इस कहानी को लिखा गया है। कहानी का प्रारंभ होता है पहली पत्नी के मर जाने से।बहने चाहती हैं भाई की जल्द से दूसरी शादी हो जाये।पहले तो भाई नुकुर करते हैं फिर एक शर्त पर तैयार होते हैं कि लड़की की उम्र इतनी हो कि ऐसा न लगे कि उनकी बेटी है। पर बहनें आवश्यकता से दो गज ज्यादा हो चालाक होती हैं। वो अपने भाई की शादी बहुत की कम उम्र की लड़की से करवा देती हैं।अब जब शादी के बाद भाईसाहब अपनी पत्नी को देखते हैं तो अपनी बहनों पर बड़ा खफा होते हैं ।बहनें कहती हैं जैसे ही बच्चे होंगे लड़की की उम्र ढलने जैसी लगने लगेगी पर ऐसा होता नहीं है। इसी गम में वो धीरे धीरे बीमार पड़ते जाते हैं।बीमार पड़ते हैं तो एक महिला उनको देखने आती है, उसे यह मालूम नहीं होता है यह उनकी दूसरी पत्नी है। वो समझती है यह उनकी बेटी है। इसलिए विलायत से आये हुए किसी रिश्तेदार से उनकी पत्नी के रिश्ते की बात छेड़ती है।उस दिन भाईसाहब को लगता है उनका और उनकी पत्नी का उम्र का अंतर थोड़ा नहीं बहुत ज्यादा है। एक तो इसी गम से बीमार थे इस घटना के बाद वो और सीरियस हो जाते हैं।उनकी पत्नी उनकी खूब देख रेख करती है, उपवास करती है रोज कई बार नमाज अदा करती है, उल्टे अब वह सुंदर के साथ साथ पवित्रता कर भाव से भी भर जाती है जिससे वह पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा अच्छी लगने लगती है। अब तो भाईसाहब एकदम ग़मज़दा हो जाते हैं। अब उन्हें पहली पत्नी याद आती है उनको लगता है अगर वो जिंदा होती तो कम से कम साथ बूढ़े होने का सुख तो उनको प्राप्त होता।इसी गम को लेकर वो दुनिया से विदा हो जाते हैं।

By-  प्रियंका प्रसाद

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