प्रेमचंद जी की कविता - Blogging Haunt - ब्लॉगिंग हॉन्ट्

प्रेमचंद जी की कविता

  • ख्वाहिश नहीं मुझे
  • मशहूर होने की,
  •         आप मुझे पेहचानते हो
  •         बस इतना ही काफी है।
  • अच्छे ने अच्छा और
  • बुरे ने बुरा जाना मुझे,
  •         क्यों की जिसकी जितनी जरूरत थी
  •         उसने उतना ही पहचाना मुझे।
  • जिन्दगी का फलसफा भी
  • कितना अजीब है,
  •         शामें कटती नहीं और
  •         साल गुजरते चले जा रहें है।
  • एक अजीब सी
  • दौड है ये जिन्दगी,
  •         जीत जाओ तो कई
  •         अपने पीछे छूट जाते हैं और
  • हार जाओ तो
  • अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
  • बैठ जाता हूँ
  • मिट्टी पे अकसर,
  •         क्योंकी मुझे अपनी
  •         औकात अच्छी लगती है।
  • मैंने समंदर से
  • सीखा है जीने का सलीका,
  •         चुपचाप से बहना और
  •         अपनी मौज मे रेहना।
  • ऐसा नहीं की मुझमें
  • कोई ऐब नहीं है,
  •         पर सच कहता हूँ
  •         मुझमें कोई फरेब नहीं है।
  • जल जाते है मेरे अंदाज से
  • मेरे दुश्मन,
  •         क्यों की एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत
  •         बदली और न दोस्त बदले हैं।
  • एक घडी खरीदकर
  • हाथ मे क्या बांध ली
  •         वक्त पीछे ही
  •         पड गया मेरे।
  • सोचा था घर बना कर
  • बैठुंगा सुकून से,
  •         पर घर की जरूरतों ने
  •         मुसाफिर बना डाला मुझे।

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