मेरी समीक्षाएं…
देखिए, आपको चाय, कॉफी, कहवा से मोहब्बत हो या न हो पर जब आप इस किताब का कवर पेज देखेंगे न तो पाएंगे की बारिश ,गरमा गरम चाय और चाय से उठती भाप….तो कुछ तो इस किताब के कवर पेज पर जो फैंटसी टाइप इफेक्ट क्रिएट हो रहा है।
पढ़ते वक्त साथ में एक कुल्हड़ वाली चाय और मैगी हो तो पढ़ने का आनंद दुगुना…..
..परिचय लिखते हुए ही त्रिपाठी जी लिखते हैं, लिखना मेरे जिंदा रहने का सबूत है और साथ में हिदायत है कि फूंक फूंक पढियेगा।अब, जब फूंक फूंक के पढियेगा तो कविताओं से उठती हुई ऊष्मा आपके मस्तिष्क तक जाएगी और लगेगा साधारण साधारण चीजें कितनी असाधारण तरीके से लिखी है त्रिपाठी जी ने।
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देखो जैसे नदियों का उद्गम पहाड़ है न वैसे ही कविताओं का उद्गम स्थल पीड़ा या प्रेम है।वैसे ‘चाय सी मोहब्बत’ रुमानियत में लिपटी रचना है जिसका सफर दिल से शुरु होकर आपकी मुस्कान पर जाकर खत्म हो जाता है।
बड़ा सीधा साधा सरल शब्दों में लिखा गया है, कहीं भी ऐसे क्लिष्ट शब्द नहीं है जिसको समझने में आपको मशक्कत करनी पड़े। वैसे तो हर कविता अपने आप में स्पेशल है पर जिन कविताओं ने मन को छुआ वो है ‘पहला आशिक’, ‘अगर हम होते’,’इश्क़ का मोड़’,’निकाह पढ़ लो’,’सच में’,’जब तुम थी,’सिलसिला’,रौशनदान”।एक कविता ‘अमृता प्रीतम’ को लेकर भी है, तो अब भी अमृता-इमरोज-साहिर को लेकर लिख रहा है।
किताब में एक और स्पेशल बात है ये जो दो लाइनों की शेरों शायरी में जितनी गम्भीर बातों को समेटा गया न वो खास है।
कुछ लाइनें
“घण्टों खामोश बैठे रहते हैं हम दोनों
हम हमारे बीच बातों को भी नहीं आने देते।”
“मुझसे पहले जिसने दर्द सहा होगा
मुझसे पहले जो आशिक रहा होगा
मुझसे पहले जो इरादा भाँप लेता था
मुझसे पहले जो बदन का ताप लेता था
मुझसे पहले जिसे यादों ने झकझोरा होगा
मुझसे पहले जिसने अक्षर अक्षर जोड़ा होगा
मुझसे पहले जिसके सपने नीले थे
मुझसे पहले जिसके तकिए गीले थे”
“हम में तुम में
उतना ही फर्क है
जितना
चुप और शांत में है
अकेलापन और एकांत में है
मजाक और खिल्ली में है
शाबाशी और तसल्ली में है
दिलदारी और दुनियादारी में है
साफ़गोई और अदाकारी में है
इतने फसलों के बाद भी
हम एक जगह मिलते हैं
इश्क़ के मोड़ पर….”-उफ्फ कितना प्यारा लिखते हैं आप।
तो कुल मिला के अच्छी किताब है।आगे भी लिखते रहिये परितोष त्रिपाठी जी अच्छा लिखते हैं आप।
Great article keep it up..Thanks