“आस्था की अपनी जड़ें होती हैं, आस्था के बीज को हम अपने ह्रदय में रोपण करते हैं और जब वह फैलता है तो मन के साथ साथ शरीर पर भी उसकी जड़ें फैलती चली जाती हैं।”
का रामजी इस साल हमारा कहीं से बुलावा है या नहीं, विश्वानाथ के दर्शन को अरसा हुआ,चित्रकूट, सती अनसुइया का आश्रम और हरिद्वार गए भी साल भर हो गया…कँहवा का संदेश है अबकी बार..!एक अचानक से सयोंग बनता है और नाम निकल कर आता है”नीम करौरी/करौली”..!
“आस्था की अपनी जड़ें होती हैं, आस्था के बीज को हम अपने ह्रदय में रोपण करते हैं और जब वह फैलता है तो मन के साथ साथ शरीर पर भी उसकी जड़ें फैलती चली जाती हैं।”
कोई भी धार्मिक जगह आपके वास स्थान से कितना ही करीब क्यों न हो, आप वहां तब तक नहीं पहुंच सकते जब तक उस आस्था का दूसरा सिरा आपको भी अपनी तरफ नहीं खींचता(मेरा मानना है कि आस्था के दो सिरे होते हैं एक हम थामे होते हैं और दूसरा हमारे आराध्य)। एक दूसरे तक पहुंचने के लिए एक आकर्षण और ऊर्जा की आवश्यकता होती है।जब का बुलावा होगा आपको बहुत प्रयास की जरूरत नहीं पड़ेगी एक अजनबी शक्ति आपको खिंचती चली जायेगी।
बाबा नीम करौली का आश्रम
“कैंची धाम” बहुत ही प्रसिद्ध जगह है, देवदार के ऊंचे ऊंचे आसमान को चूमते हुए पेड़, पहाड़, घाटियां और इन घाटियों के मध्य स्थित एकदम शांत वातावरण में नीम करौली बाबा का आश्रम।कहा जाता है कि वो हनुमान भक्त थे, कुछ लोग उन्हें हनुमान जी के अवतार भी मानते हैं। एक बार वो रेल से यात्रा कर रहे थे , उनके पास टिकट नहीं था सो अगले स्टेशन नीम करोली पर टीटी ने उन्हें उतार दिया। वे अपना चिमटा जमीन में गाड़े और वहीं बैठ गए। हरी झंडी के बावजूद भी ट्रेन नहीं चल सकी।फिर सम्मानपूर्वक उनको ट्रेन में बिठाया गया और ट्रेन चल पड़ी। तब से वो नीम करौली वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए(उनका असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था)।
इस जगह का चर्चा में रहने की और भी बहुत वजहें हैं।एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स 1974 में यहां आए थे आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में और कुछ दिन यहां रहे थे।दूसरा नाम जुड़ता है मार्क जुकरबर्ग का, वो कहते हैं फेसबुक को बेचा जाय या नहीं इस मुद्दे पर वो कन्फ्यूजन में थे तब स्टीव जॉब्स ने उन्हें यहां आने की सलाह दी थी।अपनी भारत यात्रा के दौरान वो यहां कुछ दिन रहे थे।तीसरा नाम आता है हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स का वो भी इनकी मुरीद थी।हाल ही में विराट कोहली अनुष्का शर्मा भी यहाँ दर्शन हेतु आये थे। तब से यह जगह और भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
रिचर्ड अल्पर्ट ने उनसे दीक्षा ली थी और उन्होंने इनपर पन्द्रह किताबें लिखी हैं जिनमें से ‘मिरिकल ऑफ लव’ उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है।
आप भी अगर हनुमान जी मे आस्था रखते हैं एक बार जरुर जाएं अच्छा लगेगा, घूमने भी जा सकते हैं प्रकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।कुछ न कुछ जरूर लेकर लौटेंगे, कितना लेकर लौटेंगे यह आपके ग्रहण करने की क्षमता पर है।(मुझे रामजी और हनुमान जी के प्रति बचपन से ही एक विशेष आस्था है)अंदर हनुमान चालीसा पढ़ने का अपना आनंद है।अगर आप थोड़ा ज्यादा समय लेकर गए हैं तो नीचे ही एक पानी की पतली सी धार बहती है पत्थरों पर बैठकर आप आराम से सुंदरकांड का भी पाठ कर सकते हैं।
…..रामजी फिर बुलावा कब का है…..और कौन दिशा में जाना है…..