मेरी समीक्षाएं…
दुनिया आधी -अधूरी, तिहाई , चौथाई टूटी फूटी चीजों से मिलकर ही बनी है और कमाल दखिये कि इन आधी अधूरी चीजों से मिलकर जो ये दुनिया बनी है वो कितनी कमाल की है।
प्रेम में पूर्णता क्या है?
किसी को किसी तरह साम, दाम, दण्ड, भेद लगाकर प्राप्त कर लेना या उसके न मिलने पर भी उसके लिए उपजी भवनाओं को उम्र भर के लिए एक खूबसूरत याद की तरह मन के कैमरे में कैद कर लेना? जब भी उस खास सख्श की याद आये तो मुस्कुराहटें चौड़ी हो जाएं। हम खुल के कह सके हाँ, हम किसी से मिले थे प्रेम किया था…..हम प्रेम में थे और अब भी हमारा कोई अनुभव उतना कड़वा नहीं कि वो प्रेम नफरत में बदल सके।
वास्तव में प्रेम का उल्टा शब्द नफरत होना ही नहीं चाहिए।
पर हमलोग जो हैं न अपनी प्रेम कहानियों को ताला लगाकर रखते हैं और नफरतों को नमक, मिर्च लगाकर जाने कितनी जगह परोस आते हैं।
इस किताब को पढ़कर मैंने अपने आप से प्रश्न किया कि क्या मैं एक भी ऐसी माँ से मिली हूँ जिसने कभी प्रेम किया हो????
जबाब में मैंने पाया कि मेरे स्कूल के दिनों में हर एक लड़की किसी ने किसी से प्रेम में थी पर आजतक एक भी माँ से नहीं मिली जिसने कभी दबी जुबान से भी स्वीकारा हो कि वो कभी प्रेम में थी, सब यही कहती हैं वो केवल अपने पति के प्रेम में थीं, हैं और रहेगीं।….तो फिर वो लड़कियां कौन थीं जो स्कूल जाती थीं।’
‘इब्नेबतूती’ एक ऐसी ही माँ की कहानी है जो स्वीकार करती है वो प्रेम में थी।
तो,यह कहानी प्रेम कहानी है। इस कहानी में एक विधवा माँ है और बेटा है और जो प्रेम कहानी है वो राघव की माँ शालू की है। एक समय था जब वो माँ नहीं थीं, वो अल्हड़, चुलबुली, बिंदास 20 वर्ष की लड़की थीं।उनके प्रेमी ने उनका नाम ‘इब्नेबतूती’रखा था, वो इसलिए कि कहीं वो एक जगह चैन से नहीं रुकती थीं।दोनों प्रेम में थे।प्रेम में चिठ्ठियां लिखी गई, वही इस कहानी को खास बनाता है।वक्त अपनी रफ्तार से चलता और रिश्ते अपने हिसाब से चलते रहे। एक ऐसा मोड़ आता है दोनों अलग हो जाते हैं पर इब्नेबतूती उन चिट्ठियों को संभाल कर रखती है और एक दिन वो चिट्ठियां उनके बेटे राघव को मिलती है।कहाँ तो राघव विदेश जाना चाहता था पर अब तलाश शुरू होती है माँ को वो चिट्ठियां किसने लिखी……….अब किसने लिखी, क्यों लिखी, कैसे वे अलग हुए, चिट्ठियां लिखने वाला अब है भी या नहीं सब हम ही बता देंगे तो आप इस किताब को थोड़ी पढ़ेंगे…..ये सब जानने के लिए पढ़िए ‘इब्नेबतूती‘।