मुझे मालूम है
देखो, मेरे पास कविता नहीं संवाद है,
किसी सदी का तुम्हारे और मेरे मध्य…
मुझे मालूम है, तुम क्या कहना चाहते हो,
ये जो तुम मेरी आंखों में दस सेकेंड
देखने के बाद ये बातों को जो मोड़
देते हो न हमको वो भी मालूम है।
और भी बहुत कुछ मालूम है,
पंद्रह सेकेंड की चुप्पी,
तुम्हारा मुस्कुराना,
एक उंगली से सर खुजाना
और और कुर्सी पर पीठ टिका देना।
और बताएं हम हमें क्या क्या मालूम है?
खैर, छोड़ो फिर कभी बताएंगे।
मालूम तो तुमको भी है बहुत कुछ,
मेरे बारे में।
ये जो तुमको देखने की कवायद
में कमरे की हर चीज़ को बारीकी से
हम देखते हैं न, बस तुमको छोड़ के।
तुम जानते हो नोटिस हम
तुम्हीं को कर रहे हैं,
वो बात अलग है देख नहीं रहे।
किसी दिन तुमने कहा था
तुम्हारी आँखों में सम्मोहन है,
स्नेह है, सुकून है और भी बहुत कुछ है।
मैं अपना प्रश्न भूल जाता हूँ,
और हम कहते हैं अगली
बार कोस्चन सारे रट के आना।
तुम होले से हंसते हो और कहते हो
जानती हो, मैं क्या चाहता हूं?
हम कहते हैं क्या?
और तुम कहते हो,
“और चहिये क्या संसार में!
एक ऐसा आँचल जिसके महीन
छिद्रों से संसार की सारी खूबसूरती
देखी जा सके।
कुछ खूबसूरत सा हो,
कुछ तुम सा हो!!”
और हम आदत के मुताबिक
दांये बाएं देखते हुए पूछते हैं
ये अंतिम छः लाइनें हमारे लिए थीं?
और तुम शरारत से कहते हो,
उहुँ , पड़ोसन के लिए।
और हम हंसते हुए कहते
हैं, मालूम है आंखें और मौन
के बीच सुकून, स्नेह, सम्मोहन
के अलावा भी एक शब्द है
बताएं उसको क्या कहते हैं?
तुम कहते हो क्या?
और हम कहते हैं
” छोड़ो फिर कभी बताएंगे।”