संवाद
हम लड़ सकते थे
झगड़ सकते थे,
एक दूसरे को
दोष दे सकते थे,
रूठ सकते थे
सारे रास्ते थे हमारे पास.
और सारे विकल्प होते
हुए कोई चुप हो जाना
चुनता है क्या??
लाख प्रयासों के बाद भी
तुम न इस विकल्प के इस पार
नहीं आ सकते , कभी नहीं।
तुम्हें भी कहाँ मालूम
था वो तेरह सेकेंड का
संवाद जीवन का
आखिरी संवाद था.
गलती तुम्हारी नहीं है
वास्तव में चकाचोंध,
आधुनिकता और प्रगतिशीलता
की दुनिया में
बार बार दुपट्टा संभालती
हुई और पैर के अंगूठे
से मिट्टी कुरेदती हुई
लड़कियां न मन के मापदंडों
की दुनिया में
थोड़ी फीकी पड़ जाती हैं।
कितना अटपटा से लगता है न,
जो दो लोग एक दूसरे
के लिए ऑनलाइन
आते थे,अब बस
ये देखने आते हैं
की अगला ऑनलाइन है,
एकतरफा लिखे
मैसेजेज जिनका
जाने कितने साल
से कोई जबाब नहीं लिखा गया…
एक बात कहूँ
“प्रेम कोई चाक पर
पड़ा हुआ मिट्टी का लोथड़ा
नहीं, जिसे अपने हिसाब
से घुमाया और आकार दे दिया,
मन जैसा बनने में न
मन को वक्त लगता है, बहुत वक्त,
प्रेम में मन जैसा न
बन पाने का उत्तर न,
अवहेलना नहीं होता,
कुछ चीजें
अवहेलना से धप्प से
मर सी जाती हैं,
फिर वो प्रेम वाला
भाव न फिर से जन्म
नहीं लेता।”