डाइबिटीज (diabetes) का इलाज क्या है ? आज हम इस आर्टिकल में ये जानने का प्रयास करेंगे की डाइबिटीज क्यों होता है, इसके लक्षण क्या है और इसके इलाज क्या है। दुनिया भर में लगभग 420 मिलियन लोगों को डाइबिटीज है मतलब sugar है , जिनमें से अधिकतम निचले और मध्यम वर्ग वाले लोग शामिल हैं, एवं प्रति वर्ष 15 लाख मौतें सीधे तौर पर डाइबिटीज के कारण होती हैं। पिछले कुछ दशकों में डाइबिटीज के मामलों की संख्या और व्यापकता दोनों ही लगातार बढ़ रही हैं।
डाइबिटीज के लक्षण:
आज हम भले ही ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु न हों परन्तु डाइबिटीज में अवश्य विश्व में नम्बर वन हैं।
डाइबिटीज की लक्षणों की बात करें तो इससे आपको बार-बार गला सूखना,अधिक भूख लगना, एका-एक वजन का बढ़ जाना या घट जाना, थकान और कमजोरी महसूस होना, जख्म का जल्दी ना भरना, आंखों की रोशनी में धुँधलापन आना, हाथ पैर में झुनझुनी या शिथिल हो जाना, पैरों व घुटनों में दर्द एवं मापने पर शरीर में शर्करा की मात्रा 147mg/dl से अधिक पाई जाए तो यह sugar होने की ओर इशारा करता है।
डायबिटीज होने का क्या कारण है?
डॉक्टर आमतौर पर मधुमेह को एक दीर्घकालिक स्थिति के रूप में देखते हैं जो एक बार विकसित होने के बाद जीवन भर बनी रहती है। इसके लिए हेल्थ एक्सपर्ट्स हमेशा डायबिटीज के मरीजों को मीठी चीजों से दूर रहने की सलाह देते हैं। यह बीमारी रक्त में शर्करा स्तर बढ़ने से होती है और फिर बढ़ते शुगर को कंट्रोल करना आसान नहीं होता है ऐसा कहा जाता है परन्तु ऐसा नहीं है । लेकिन डायबिटीज मीठा खाने से नहीं होता है (जैसी आम धारणा है), यह तब होता है जब आपका लिवर खाया गया मीठा पचा नहीं पाता है।
और हमारा लिवर उसे तब पचाता है जब आप खुश होते हैं। जब आप प्रसन्न होते हैं, प्रसन्न होने पर हमारा शरीर एक रसायन पैदा करता है जिसे ‘इंसुलिन’ कहते हैं। यह मीठे को पचाता है। परन्तु जब आप क्रोध में, तनाव में, कामवेग में या अन्य परेशानी में या कहीं ध्यान बंटा हो जैसे टीवी या मोबाइल देखते हुए जब हम भोजन करते हैं, ऐसी परिस्थिति में इंसुलिन पैदा नहीं होता, जिस कारण डायबिटीज यानी शुगर का रोग हो जाता है।
आयुर्वेद में डाइबिटीज (diabetes) का इलाज
“आयुर्वेद में डाइबिटीज (diabetes) का इलाज शत-प्रतिशत संभव है इसमें हमारे ऋषि-मुनियों का कहना हैं कि अगर डायबिटीज को जड़ से खत्म करना है तो आप प्रकृति को अपनाइये”
नीम की कड़वी पत्तियां डायबिटीज में रामबाण हैं…प्रतिदिन सुबह-सुबह करेले का जूस पीएं या करेले की सब्जी एवं अदरक खाए साथ ही एक्सरसाइज करें तो आप डायबिटीज की बीमारी से बच सकते है। इसके साथ ही आप प्रतिदिन बीस कोस पैदल चलो। आजकल के लोगो को यह पढ़ते ही झटका लग सकता है । लेकिन सात्विक भोजन और दूध-घी खाए हमारे पूर्वज अंधेरे चलते थे सुबह और शाम तक यह टारगेट पूरा कर लेते थे आराम से। चूंकि निरुद्देश्य यह सब करना बोरिंग व उबाऊ है, इसलिए हमारे प्रबुद्ध पुरखों ने हिमालय के दुर्गम स्थानों में देवस्थल ढूंढे, मठ बनाए, धाम बनाए, तीर्थस्थान खोजे, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, कावड़, मानसरोवर, वैष्णोदेवी, कैलाश, यह सब किसलिए ?
एक तीर से दो निशाने, पहला सुख-निरोगी काया, दूसरा ये कि तीर्थ ‘तीर्थ’ रहें, सिर्फ जरूरतमंद, श्रद्धालुजन, भक्तजन या असाध्य रोगों से पीड़ित जन ही वहां पहुंचे, धर्म ‘धर्म’ की तरह संचालित हो, धंधे की तरह नहीं, ‘तीर्थ’ टूरिस्ट स्पॉट या सेल्फी प्वाइंट बनकर न रह जाए।
इसीलिए तीर्थ यात्राओं से लोग स्वस्थ होकर लौटते थे, ऐसी लाखों कथाएं बड़े बूढ़ों से सुनने को मिलती हैं । आयुर्वेद के ऋषि कहते हैं ‘लंघनम परम औषधम’, अर्थात उपवास भी हमारे हर रोग को दूर करने के लिए सबसे कारगर औषधि है। तो इतने लंबे, इतने ऊँचें शिखरों पर चढ़ने उतरने में और थोड़ा बहुत रूखा-सूखा खा लेने से आप नवजीवन प्राप्त करके लौटते थे।
इसलिए, दूरस्थ तीर्थ स्थल हमारे पूर्वजों की उल्लेखनीय बुद्धिमत्ता के प्रमाण के रूप में खड़े हैं, जो हमें एक जीवित विरासत प्रदान करते हैं। हालाँकि, आज उपलब्ध ढेर सारी आधुनिक सुविधाओं – जैसे वाहन, खच्चर, गाड़ियाँ, पालकी, हेलीकॉप्टर, रेस्तरां, होटल और विभिन्न स्थानों पर दुकानें – के बावजूद वे अक्सर हमें ऐसी यात्राओं के लिए आवश्यक कठोर परंपराओं का पालन करने से रोकते हैं। इसलिए, संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद, इन दुर्गम स्थानों को पैदल ही तय करना समझदारी है। ऐसा करके, हम न केवल तीर्थयात्रा की पवित्रता का सम्मान करते हैं बल्कि गधे या खच्चर जैसे जानवरों को बोझ उठाने से भी बचाते हैं। हालाँकि उनके मालिकों को मौद्रिक मुआवजा मिल सकता है, लेकिन इन जानवरों की भलाई पर विचार करना आवश्यक है।