
मेरी समीक्षाएं…
इस वर्ष की यह पहली किताब है जिसको पढ़ा गया है और लेखक अतुल कुमार राय की भी यह पहली किताब है।
इससे पहले भी गाँव पर बहुत कुछ लिखा गया है,पढ़ा गया है पर अतुल कुमार राय जिस हिसाब से इस किताब को लिखे हैं वह उस बात का परिचायक है कि उन्होंने गाँव को बस देखा और कलम में ही नहीं उतारा है बल्कि उसे जीया भी है।
‘चाँदपुर की चंदा‘ प्रेम कहानी है, अब प्रेम कहानी होगा तो उसमें एक लड़का होगा ही, एक लड़की होगी ही, अड़ोसी होंगे, पड़ोसी होंगे, दीवालों के भी कान होगें, कुछ जीने नहीं देंगे, कुछ मरने नहीं देंगे, कुछ मिलने नहीं देंगे त एम्मए कौन खांस बात है।बिल्कुल खांस बात है, खास बात ई है कि इसमें एकरे अलावा बाढ़ के पानी जइसन बहता हुआ पॉलिटिक्स है जिसमें सब अपना हिसाब से बस हाथ मुँह नहीं धो रहे हैं बल्कि नहा धो के एकदम फ्रेश हो जाना चाहते हैं। ई किताब में बलिया जिला का एकदम मीठ बोली है जइसन गुड़ के रस में दही डालकर जौन मिठास आता है न एकदम वही वाला टेस्ट समझिये।आ व्यंग्य त अइसन है कि इसको व्यंग्य न कहकर एकदम ठेठ भाषा में हुरकुचना कह सकते हैं, जौन पढ़ कर कपार एकदम्मे झनझना जाय।शिक्षा प्रणाली का भी ऐसा वर्णन है कि आप को भी पढ़ के लगेगा बताओ दुनिया में अइसा भी जगह है जहां एतना आराम से परीक्षा का कॉपी लिखा सकता है।हर दस पन्ना पढ़ने के बाद ऐसा लगता है अरे गाँव मे असेही त होता है, फलाना के बियाह में गए थे तो ऐसा हमारे साथ भी त हुआ था, बताओ यही कुल बात किताब में लिख दिए हैं अतुल कुमार राय।
अब ये तो कहानी का इनवायरमेंट हो गया पर जो कहानी की मुलपात्र है वो है चंदा जिसकी कहानी इन सबके सहारे धीरे धीरे आगे बढ़ती है। देखा जाय तो हर गाँव मे ऐसी सैकड़ों चंदा है जिनकी कहानी बिल्कुल एक जैसी ही ही।घर, दुआर, गोबर,गोइठा, गोरु ,बछरू, नाद, चूल्हा, छोलनी, कलछुल,आजी, बाबा,स्कूल…..फिर सिलवट मसाला,रोटी तरकारी, ललटेन, दीया, आजी के दवाई पर जाकर खत्म हो जाता है।शिक्षा का क्या महत्व है एक लड़की के जीवन में इसपर गाँव में जयतादार लोग बड़ा कम बात करते हैं। लड़का बी टेक कर लेगा, बी एड कर लेगा त कहीं लग जायेगा, कलकत्ता, नोएडा, बम्बई जाकर कुछ न कुछ कर लेगा और लड़की उसका क्या?क्या उसको सपना देखने का पढ़ने का आगे बढ़ने का राइट नहीं है। बिल्कुल राइट है, एकदम राइट है पर इस राइट तक पहुंचने में समाज लड़की को कितना बार रांग साबित कर देता है न ई बात समाज को भी नहीं मालूम है। और रॉन्ग साबित करने का सबसे आसान तरीका है उसका चरित्र गलत साबित कर दो, इससे आसान कुछ नहीं है। पर लोगों को मालूम होना चाहिए उस पूरे राइट रॉन्ग के चक्कर में उस लड़की की मानसिक स्थिति पर क्या गुजरी है, उसकी अंतरात्मा क्या सोचती है….बहुत बार ऐसी स्थिति में लड़कियां डिप्रेशन में चली जाती हैं, एक लम्बा डिप्रेशन जो खुद उनके घर परिवार वालों की देन है। जिस दिन से लड़की का जन्म होता है बड़ा सहज ही गाँव मे बोल दिया जाता है बियाह शादी हो जाइत लईकी अपना घरे दुवारे चल जाइत।शुक्र है ,लड़कियों ने कहीं पलट के यह नहीं पूछा कि त बाबा ई केकर घर है न तो जबाब में आंख के पानी के साथ दु चार गो गारी मुफ्त में मिल जाता कि शुटुर शुटूर जबान लड़ा रही है। गाँव का एक बाप लईकी के बियाह तय होने से लेकर डोली उठने तक क रोटी खाता है, केतना घण्टा सोता है, और आकाश में का ताकता रहता है ई बस लड़की का बाप जान सकता है।दहेज के डिमांड खत्म ही नहीं होता है कैश, गाड़ी, कूलर, फ्रिज, बेड, बनारसी साड़ी।पूछे समाज गाँव मे फटा बनियान पहन कर हर जोतने वाले से अपना मन से फलाना के बाबू आप अपने लिए कपड़ा कब सिआए थे, त पता चलेगा किसान के बनियान से ज्यादा समाज में केतना दहेज रूपी छेद है।फिर एक दिन बियाह के बाद दहेज के लिए जला दी जाती हैं बेंटिया। ये वही बेटियां हैं जिनके लिए उनका बाप के सी सी के कर्जा में डूब गया, खेत बिका गया, खूंटा पर का गाय बिका गई, उ गाय जिसको लईकी रोज रोटी खिलाती थी। जिस दिन गाय बिकाई उ दिन लड़की और गाय दोनों रो दी, दोनों के आँख में लोर। ई सब है इस किताब में आप इसलिए इसको पढ़िए। आपको अपने चारों ओर भी दहेज के लिए एतना लोभी प्रलोभी मिल सकते हैं।
ई तो था दहेज अब इसके अलावा बकैती भी इसमें कुटकुट कर भर है।बलिया रेलवे टिशन में खड़ा रहनेवाला ओटो वाला भी दिमाग से इतना तेज होता है कि आदमी को दखकर उसका इतिहास, भूगोल सब बता दें, जिलेबी जइसन बात में एतना उलझा देगा कि अँतड़ी में का बात उगलवा लेगा, बिना नब्ज पकड़े बेमारी, मनोदशा, दिशा सब समझ लेगा।ई ओटो वाले हैं। अतुल जी इनके बारे में लिखते हैं।
“देखिये, जिस दिन से साइंस का पेपर था, उस दिन त हमारी भैंस बिया गई थी। हम परीक्षा में बैठिए नहीं पाए थे। हमारी जगह हमारे भड़के भइया का छोटका सरवा परीक्षा दिया। इसलिए पैंसठ परसेंट आया नहीं तो ई बूझिये कि हमारा पचहत्तर से उपरे हेल गया होता।”
अब कोई पूछे ओटो वाले भइया भैंस इमोर्टेन्ट था कि साइंस का पेपर?????
एक दूसरा जगह ओटो वाले भइया का कॉन्फिडेंस देखिये…
“जो स्टूडेंट बलिया जिले में हाईस्कूल, इंटर पास नहीं होगा, उसको तीनों तिरलोक , चउदहवों भुवन में ब्रह्मा, बिसनु, महेश भी पास नहीं करवा सकते हैं।”
लड़का को डांटना फटकारने पर बाबु का एकदम राइट है और ई रोज के दिनचर्या में आता है, कोई नया बात नहीं है। अब इसको किताब में ऐसे लिखा गया है
“अरे ददरी मेला में बैल बेंचकर इसके लिए साइकिल खरीदे कि पढ़कर एकदिन आदमी बन जायेगा।”
इस किताब का हर तीसरा पन्ना आपको हंसने के लिए मजबूर कर देगा और कभी रोने को।कहीं भी पढ़ कर यह नहीं लगा कि कुछ असम्भव या कल्पना वाला चीज़ इस किताब में लिखा गया है।
एक जगह सरस्वती पूजा का जिक्र है। गांव में आम बात है इन सब मौकों पर सिनेमा का चलना। पर्दा पर सिनेमा चल रहा है ‘सिर्फ तुम’,सीन है आरती का पर्स छीनकर भागने वाला। एक गांव की भौजी सिन देख के एक्साइटेड हो जाती हैं , चिल्लाने लगती हैं, “कुत्ता!मुवना ददरी मेला में हमारा पर्स लेकर ऐसे ही एक चोर भाग गया था।” यह सीन पढ़कर एक बार हमको बचपन की एक घटना याद आई।तीस साल पहले सरस्वती पूजा पर सिनेमा का वीडियो देखकर एक भौजी हमसे प्रश्न पूछी थी बबुनी शहर में हमरा नाप के जीन्स मिल जाई।हम अचानक से भकुआ गए, ई कैसा प्रश्न?आज तीस साल बाद लगता है अबोध होना भी कितना बोध करा देता है।
किताब की एक घटना चंदा की शादी तय होना अंतर्मन को बेध गई।इस किताब में लिखी बातें अतीत में ले जाती हैं, घटनाएं ताजा होती हैं। कभी किसी लड़की की शादी तय होने पर मैंने पूछा था क्या करते हैं जीजाजी? उस लड़की ने बीस वर्ष पूर्व कहा था बाबुजी त छ महीना से कुछु बोलते ही नहीं हैं दिदिया बड़ा टेंशन में हैं, न खाते हैं न पीते हैं हमको कौनो फर्क नहीं पड़ता कि लइका कइसन है,हम बस एतना जानते हैं दिदिया जे दिन दुवार पर बाजा बाजेगा बाबुजी खुश होंगे भीतर से बस केहू से हो जाए। कितनी पीड़ा,हृदय में इतनी पीड़ाएँ लेकर कहाँ जाएंगी ये लड़कियां। इन पीड़ाओं, मनोदशा की कहानी है इस किताब में इसलिए इसे पढ़िए।
जो एक नई बात इस किताब में है वो है लोकगीत की, फगुवा से लेकर बियाह तक का लोकगीत, मन्ढक्की से लेकर गारी तक।
जो इस किताब की सबसे सुंदर लाइन है वो हमको ये लगी।
“एक साल की गारंटी हो या पांच साल की। फ्रिज , कूलर, टीवी, ऐसी, सोफा, पलंग की गारंटी तो हर कंपनी दे देती है लेकिन दहेज में दिए जाने वाले इन सामानों से आपकी बेटी पाँच दिन भी खुश रहेगी, इसकी गारंटी आज तक न कोई कंपनी दे सकी है, न ही कोई दुकानदार ले सका है।”
इस कहानी से बस एक आध छोटी सी शिकायत है, एक तो इसके कवर पृष्ठ से है। इसका कवर पृष्ठ और भी खूबसूरत हो सकता था।दूसरा गुड़िया के विवाह में क्या हुआ था उसका बहुत खुलकर जिक्र नहीं है जो इस कहानी का एक तरह से टर्निंग पॉइंट था, तीसरा जौन चार पांच लोग ओटो में बैठे थे बड़ा धांसू तरीके से उनका इंट्री हुआ था फिर उनपर बहुत कुछ आगे पढ़ने की एक ईच्छा सी रह गई, कहानी में फिर कुछ विशेष उनपर प्रकाश नहीं डाला गया।
कुल मिला के किताब बहुत अच्छा है, एकदम एक्के बैठकी में बैठ के निपटानेवाला।आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए अतुल कुमार राय को शुभकामनाएं।
By – प्रियंका प्रसाद