
मेरी समीक्षाएं…
आषाढ़ का एक दिन मोहन राकेश द्वारा लिखा हुआ एक नाटक है जिसके मुख्य पात्र कालिदास, मल्लिका,अम्बिका, मातुल ,प्रियंगु और विलोम हैं।
नाटक का कथावस्तु प्रेम है। नाटक के तीन हिस्से हैं और कमाल की बात है नाटक आषाढ़ की बारिश से शुरू होकर आषाढ़ की बारिश पर खत्म हो जाती है। एक बड़ा सा गोल वृत बनाते हुए। नाटक के केंद्र में मल्लिका है और कालिदास मल्लिका से दूर होकर दुनिया की तमाम यात्राओं को करते हुए अंत में फिर मल्लिका तक पहुंचते हैं।
पर प्रेम में लौट आना सदा के लिए चले जाने से ज्यादा दुखकर है।वही दुःख आता है मल्लिका के हिस्से।
पहले भाग में मल्लिका स्वंय कालिदास को अपने से अलग करती है उनके मान-सम्मान के लिए। मल्लिका का मन केवल विवाह जैसे रिश्ते में बंध के कालिदास को पाना नहीं है, वह चाहती है कालिदास की लेखनी को सम्मान मिले।
सम्मान के लिए उनको भी दूर जाना पड़े तो जाए।कालिदास का मन ग्राम छोड़ने को नहीं है उनका मन ग्राम के सौंदर्य और मल्लिका के प्रेम में बंधा है। वह कहते हैं मैं कई सूत्रों से यहां से बंधा हुआ हूँ, उन सूत्रों में तुम भी एक हो, आकाश, मेघ, हरियाली,हरिण के बच्चे, पशुपाल। यहाँ से जाकर मैं इस भूमि से उखड़ जाऊंगा।
मल्लिका कहती है जो कुछ यहां से ग्रहण के सकते थे कर चुके अब नई जगह और उर्वरक भूमि मिलेगी।
न चाहते हुए भी कालिदास चले जाते हैं।
दूसरे भाग में में कालिदास लौटते हैं, पर कालिदास अकेले कहाँ है उनके साथ उनकी पत्नी प्रियंगु लौटती हैं। प्रियंगु मल्लिका से मिलने जाती है, मल्लिका का घर पहले से जीर्ण शीर्ण हो गया है।प्रियंगु चाहती है मल्लिका को कुछ धन दौलत दिया जाय और अपनी सहेली बना लिया जाय। मल्लिका अस्वीकार कर देती है।
उसे उम्मीद था , कलिदास उससे मिलने आएंगे, पर कालिदास नहीं आते।प्रियंगु कहती है मैं जान चुकी हूं तुम बचपन में उनकी संगिनी रह चुकी हो, कोई ऐसा सूत्र नहीं है कि तुम यहाँ रहो। दूसरे जब कालिदास ग्राम की चर्चा करते हैं तो विचलित हो जाते हैं राजनीति में समय का बहुत महत्व है।राजनीति साहित्य नहीं है।
इस कथन को प्रियंगु ने सही कहा है “राजनीति साहित्य नहीं है” पर कथन की गूढ़ता को शायद वह स्वयं नहीं समझ पाई है। एक साहित्य से जुड़ा व्यक्ति राजनीति नहीं कर सकता। साहित्य कर तार मन से जुड़े होते हैं और राजनीति के दिमाग और चातुर्य से।
अब विडम्बना देखिए जिस मल्लिका ने स्वयं कहा था कि दूसरे जगह की भूमि ज्यादा उर्वरक होगी वो स्वंय ग्राम का मोह त्याग नहीं पाती। मोह ग्राम का है या कालिदास का या उस जगह से अगाध स्नेह जो कलिदास कभी छोड़ना नहीं चाहते थे ये तो उसका मन जाने पर उसके प्रेम में ताने, उलाहने, क्रोध कुछ भी नहीं है।
नाटक के तीसरे भाग में फिर बारिश हो रही है, कालिदास लौटते हैं मल्लिका के पास,मल्लिका विवाहित है अब उसकी एक पुत्री भी है।पहले जिस घर मे 3 कुंभ थे दूसरे भाग में 2 और तीसरे भाग में कुंभ केवल एक रह गया है। बर्तनों की संख्या भी पहले से कम है, कई जगहों पर काई जम गई है।
जो दिन प्रतिदिन बढ़ा है उस घर में वो केवल एक चीज़ है मल्लिका का कालिदास के प्रति प्रेम, उसके विश्वास में कोई कमी नहीं है और कालिदास की कलम ने जो भी रचा,मल्लिका और ग्राम के आसपास ही रचा नई उर्वरक भूमि उनके चित्त को आकर्षित नहीं कर पाई।मल्लिका और ग्राम से दूर होकर हृदय बंजर हो गया नया कुछ संचित नहीं किया जा सका।
वह स्वयं कहते हैं, जो कुछ लिखा यहीं का संचय था “कुमारसम्भव” की पृष्ठभूमि यह हिमालय है और तपस्विनी “उमा” तुम हो। “मेघदूत” के यक्ष की पीड़ा मेरी पीड़ा है और विरह विमर्दिता “यक्षिणी” तुम हो।” अभिज्ञान शाकुन्तल”की “शकुंतला” तुम हो।
जो कालिदास के हृदय के इतने करीब है उसका जीवन इतना पीड़ादायी??जाने कितने लोगों ने उन आलेखों को पढ़ा, उस मल्लिका का जीवन इतना अभावग्रस्त??
कलिदास को पहले लौटना था न मल्लिका के पास!
एक आषाढ़ का मेघ कलिदास के अंदर घुमड़ता है जो बरस नहीं पाता।क्योंकि ऋतु नहीं मिलती, वायु नहीं मिलती।यहां रहता तो भींग कर लिखता वह सब जो अब तक नहीं लिख पाया।
इसके संवादों में सबसे खूबसूरत संवाद तीसरे भाग का कालिदास और मल्लिका के बीच का ही है….कलिदास पन्ने पलटते पलटते अचानक रुक जाते हैं, यह कौन सी रचना है….
मल्लिका कहती है आने हाथों से बनाकर सिए थे कभी मिलो तो भेंट दे सकूं।
कलिदास कहते हैं “स्थान स्थान पर पानी की बूंदें पड़ी हैं जो निः सन्देह वर्षा की बूदें नहीं हैं।लगता है तुमने अपनी आंखों से कोरे पृष्ठों पर बहुत कुछ लिखा है……इन पर एक महाकाव्य की रचना हो चुकी है…अनन्त सर्गों के एक महाकाव्य की।”
इन लाइनों को कितनी भी बार पढ़ा मैंने…. एक अलग ही भाव सौंदर्य है।सौंदर्य केवल रूप का नहीं ,प्रेम का, प्रतीक्षा का, पवित्रता का।
अंत मे कलिदास मल्लिका को छोड़ कर चले जाते हैं और नाटक समाप्त हो जाता है।
प्रेम का अर्थ केवल प्राप्त करने से नहीं है और प्राप्ति केवल प्रेम के पूर्णता का सूचनांक नहीं।
-प्रियंका प्रसाद